क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955? Essential Commodities Act in Hindi

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भारत में फैली कोरोना वायरस जैसी गंभीर वैश्विक महामारी के बीच आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 (Essential Commodities Act 1955) की काफी चर्चा हो रही है। इसलिए आइये जानते है कि आखिर आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 क्या है और इससे भारतीय जनता को क्या फायदा है।



क्या है आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955?
आवश्यक वस्तु अधिनियम को वर्ष 1955 में संसद ने पारित किया था। इसी अधिनियम के द्वारा सरकार 'आवश्यक वस्तुओं' का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण को सुचारू रूप से नियंत्रित करती है। जिससे उपभोक्ताओं को वह चीजें मुनासिब दाम पर आसानी से उपलब्ध सकें। जब सरकार अगर किसी चीज को 'आवश्यक वस्तु' घोषित कर देती है तो सरकार के पास यह अधिकार आ जाता है कि वह उस पैकेज्ड प्रॉडक्ट का अधिकतम खुदरा मूल्य तय कर दे। जिससे कारण उस मूल्य से अधिक दाम पर चीजों को बेचने वाला को सजा दिलाई जा सके। इस कानून में केंद्र सरकार को पूरा अधिकार होता है कि वह राज्यों को स्टॉक लिमिट तय करने और जमाखोरों पर नकेल कसने के लिए कहे ताकि चीजों की आपूर्ति और कीमत प्रभावित न हो। राज्य और केंद्र के बीच किसी तरह का मतभेद होने पर केंद्र का नियम लागू होता है।

आवश्यक वस्तु अधिनियम का उदे्श्य
खाने-पीने की चीजें, दवा, ईंधन जैसी कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं जिसके बिना जीवन व्यतीत करना मुश्किल होता है। अगर कालाबाजारी या जमाखोरी की वजह से इन चीजों की आपूर्ति प्रभावित होती है तो आम जनजीवन प्रभावित होगा। इसलिए ऐसी चीजों को सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के तहत आवश्यक वस्तु की सूची में डाल देती है। सरकार का मकसद है कि लोगों को जरूरी चीजें सही कीमत पर मिले।



इस अधिनियम में कौन सी चीजें शामिल है?
जीवन व्यतीत के लिए सात आवश्यक वस्तुओं को इस श्रेणी में डाला गया है– 1. पेट्रोलियम और इसके उत्पाद जिनमें पेट्रोल, डीजल, नेफ्था और सोल्वेंट्स वगैरा शामिल हैं। 2. खाने की चीजें जैसे खाने का तेल और बीज, वनस्पति, दाल, गन्ना और इसके उत्पाद जैसे गुड़, चीनी, चावल और गेहूं, 3. टेक्सटाइल्स, 4. जरूरी ड्रग्स, 5. फर्टिलाइजर्स। सरकार द्वारा इस सूची में समय-समय पर बदलाव होता रहता है। हाल ही में सरकार ने मास्क और सैनिटाइजर को भी सूची में शामिल किया था।

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क्या है सजा का प्रावधान?
इस कानून के सेक्शन 7(1) ए (1) के तहत सही लेखा जोखा न रखने, रिटर्न फाइल का उल्लंघन करना जुर्म है। जिसके लिए तीन महीने से एक साल तक की सजा का प्रावधान है। सेक्शन 7(1) ए (2) में बड़े अपराधों जैसे जमाखोरी, मुनाफाखोरी, कालाबाजारी आदि के लिए सात साल तक जेल की सजा या जुर्माना, या दोनों हो सकता है।